तारीख 4 अप्रैल 1979 को पूर्व प्रधानमंत्री भुट्टो को फांसी दी गई थी।
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Why was Zulfikar Ali Bhutto hanged by Gen. Zia ul Haq? ये बात तो सच है कि पाकिस्तान में जब भी प्रधानमंत्री ने सेनाध्यक्ष बनाया उसी सेनाध्यक्ष ने कुर्सी पलटी और तानाशाह बन बैठा। ये कहानी हैं पाकिस्तान के कसूरी परिवार की । इस परिवार के मुखिया मोहम्मद अहमद खान कसूरी थे। पाकिस्तान के खानदानी रईस और सबसे बड़े वकील। कसूरी जुल्फिकार अली भुट्टो की बातों से और उनके अंदाज़ से बहुत प्रभावित थे यही वजह थी कि उन्होने भुट्टो की पारी को ज्वाइन कर ली। भुट्टो भी कसूरी को बेहद पसंद करते थे। उनकी काबिलियत को सम्मान देते थे।
तारीख 10/11 नवबंर 1974 रात के वक्त लाहौर की शमशाद कॉलोनी में कार तेजी से बढ़ी जा रही थी। और कार को अहमद कसूरी चला रहे थे। अहमद रजा कसूरी मोहम्मद अहमद खान कसूरी के बेटे थे। मोहम्मद, अहमद खान कसूरी और उनकी पत्नी व साली भी कार में बैठी थीं। कार पर अचानक फायरिंग शुरु हो जाती है। सबने कार में सिर नीचे कर लिया और अहमद ने कार भगाने की कोशिश की।थोड़ी दूर कार बढ़ी थी कि मोहम्मद अहमद खान कसूरी का सिर बेटे के कंधे पर तिरछा हो जाता है। बेटे को ये समाज आया की उसके पिता को गोली मागि हैं.लिहाजा बेटे ने कार अस्पताल की तरफ दौड़ा दी। असपताल पहुंचने के बाद ऑपरेशन शुरु होता है और ये खबर आग की तरह पूरे पाकिस्तान में फैल जाती है। रात में ढाई बजे जुल्फिकार अली भुट्टो को खबर दी जाती है। इधर डॉक्टरों की लाख कोशिश के बाद भी मोहम्मद अहमद खान कसूरी की जान नहीं बचाई जा सकी और उनकी मौत हो गई।
इस मुकाबले के के अहम चश्मदीद अहमद रजा थे। पुलिस ने अहमद के बयान लेने शुरु किए। अहमद रजा कसूरी ने बयान में एक ऐसा नाम लिया कि पुलिसवालों के पैरों तले से जमीन खिसक गई। इस हत्या की साजिश को पाकिस्तान के वजीर ए आजम जुल्फिकार अली भुट्टो ने रचा है।पुलिसवाले हैरान रह गए कि प्रधानमंत्री के खिलाफ कैसे एफआईआर लिखी जाए। कई बड़े अफसरों ने समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन अहमद रजा अपने बयान पर अड़े रहे। अहमद रजा भी नेशनल असेंबली के सदस्य थे। हत्या के पांच महीने बाद असेंबली का सत्र बुलाया गया था। सेशन चालू ही हुआ था कि अहमद रजा ने हाथ उठाया तो देखा गया कि उनके हाथ में एक शीशी है जिसमें खून भरा है। अहमद ने असेंबली में कहा कि मेरे पिता की हत्या की गई और ये मेरे पिता का खून है।ये बात उन्होंने भरी असेंबली मैं कह दिया।
जुल्फिकार अली भुट्टो भी असेंबली में मौजूद थे विरोधी पार्टियों ने हंगामा शुरु कर दिया। हंगामे को देखते हुए एक जज की देखरेख में जांच कमेटी बना दी गई। कुछ ही दिनों बाद जांच कमेटी नें अपनी रिपोर्ट दी कि इस हत्या में प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का कोई हाथ नही है। यू हीं तीन साल गुजर गए लेकिन कसूरी के हत्यारों का कोई पता नही चला ना ही जुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई। चुनाव आ जाता है। मार्च 1977 में यानि तीन साल बाद। भुट्टो की पार्टी चुनाव जीत जाती है।चुनाव नतीजे से विरोध प्रदर्शन और बढ़ जाता है। विरोधी आरोप लगाते हैं कि चुनाव में धांधली की गई है। विरोध रोकने के लिए पाकिस्तान में बार, शराब इत्यादि पर रोक लगा दी जाती है। भारत के खिलाफ मुहिम शुरु कर देते हैं जैसे कि पाकिस्तना की सरकारें अक्सर करती रहती हैं। इसी दौरान विरोध प्रदर्शन को कुचलने के लिए भुट्टो ने पाकिस्तान की सेना के चीफ के पद पर जनरल जियाउल हक को तैनात कर दिया। शायद ये जुल्फिकार अली भुट्टो की जिंदगी का सबसे गलत फैसला था।विरोध प्रदर्शन बढ़ता जा रहा था लिहाजा एक रोज़ 4-5 जुलाई 1977 को आर्मी चीफ जनरल जियाउल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो सरकार का तख्ता पलट दिया और पाकिस्तान पर सेना का कब्जा हो गया। जुल्फिकार अली भुट्टो को जेल में डाल दिया गया। जुल्फिकार अली भुट्टो पर मार्शल लॉ लगा दिया गया। भुट्टो के जेल जाने के बाद अहमद रजा ने दोबारा अपने पिता के कत्ल का मामला उठाया।
Quaid-e-Awam President Zulfikar Ali Bhutto is welcomed passionately in south Punjab. pic.twitter.com/yOm70GP1ib
— Zulfikar Ali BHUTTO (1928-1979) (@fan_bhutto) February 5, 2024