नमस्कार दोस्तों
आज हम जानने वाले है कोण थे रंगा और बिल्ला और क्या था इनका Case? के बारे मैं जिसे सुनकर कई लोग आज भी घबरा जाते है,वो भयानक रात जिस दिन ये हादसा हो गया था ,जिस केस को लेकर खुद प्रधानमंत्री जी भी टेंशन मैं आ गए थे.एक ऐसा वक्त भी भारत ने देखा था जब सब लोग एक ही आवाज मैं बोल रहे थे की फांसी देदो फांसी देदो।वो केस है रंगा और बिल्ला का.तो चलो जानते है क्यों बन गए रंगा बिल्ला इस देश के सबसे खतरनाक अपराधी जिसको मरने के लिए पूरा देश उभर गया था.
कोण थे रंगा और बिल्ला और क्या था इनका Case?
ये कहानी है २६ अगस्त १९७८ की.दिल्ली का एक घर और घर मैं दो लोग रेडियो के सामने बैठे है.उनके चेहरे से ऐसे लग रहा है की वो किसी का इंतजार कर रहे है.तभी घडी मैं ८ बज जाते है और वो लोग रेडियो ऑन करते है.एक थे नेवी ऑफिस मदन मोहन चोपड़ा और दूसरी थी उनकी वाइफ रमा चोपड़ा।
तो बात ये थी की उसी दिन उनके दोनों बच्चे यानि की एक लड़की और एक लड़का।लड़की का नाम गीता था और वो महज १६ साल की थी और लड़के का नाम संजय था और वो १० वी कक्षा का स्टूडेंट था.आज वो दोनों दिल्ली मैं ही आल इंडिया रेडियो स्टेशन गए थे क्योंकि आज उनका रेडियो के ऊपर एक प्रोग्राम था और उसका टाइम ८ बजे का था लेकिन इधर ८ बजे अपने बच्चोंका प्रोग्राम नहीं आने के कारन मदन चोपड़ा निराश हुए और वो जल्द से जल्द आल इंडिया रेडियो स्टेशन पहुँच गए.पर उधर जाते ही उनको ये पता चल गया था की उनके बच्चे आज उधर आये ही नहीं।वो बहुत घबराये
सबुत कैसे मिल गया.
पर इधर शाम को ६:४५ को नोरत दिल्ली के एक पुलिस स्टेशन मैं एक फ़ोन आया। फोनपर एक आदमी कह रहा था की साहब अभी अभी मैंने एक ४ व्हीलर देखि है जिसमे दो आदमी पीछे एक लड़का और एक लड़की है लेकिन वो लड़की बहुत ही चिल्ला रही थी। ये सुनकर पोलिसवाले हैरान हुए। उसके बाद ही राजेंद्रनगर के पुलिस ठाणे मैं भी कॉल बजा वह पर भी एक आदमी बोल रहा था की साहब अभी अभी मैंने एक गाड़ी देखि जिसमे एक बच्चे के शर्ट पर खून लगा था और लड़की चिल्ला रही थी। .और साहब उस गाड़ी का नंबर है MRK-8930
वक्त निकल रहा था लेकिन अक्क बाप को ये नहीं समझ मैं आ रहा था की उनके बच्चो के साथ क्या हुआ है। उसी वक्त वो पुलिस स्टेशन चले गए और वो रो पड़े पुलिस मैं.उसके बाद उन्होंने अपने बच्चो की मिस्सिंग कंप्लेंट दर्ज कर दी ,उसके बाद मैं पुलिस ने तहकीकात चालू की.पुलिस के साथ साथ नेवी के ऑफिसर्स भी खोजबीन मैं जुटे रहे.लेकिन कुछ भी हाथ नहीं लग रहा था.एक हताश बाप दर्द भरी चिंता लेकर दर दर ढून्ढ रहा था लेकिन कुछ भी हासिल नहीं हूँ पाया।
ऐसे ही दो दिन गुजर गए पुलिस ने अब तो बाजु के आगरा ,मथुरा और हरियाणा के पुलिस को भी बता दिया था पर कुछ भी नहीं हाथ मैं लग रहा था.पुलिस ने तो आरोपी के ऊपर २००० रुपयों का इनाम भी लगाया था.इसी बीच मैं पुलिस ने गाड़ी नंबर ट्रेस कर लिया और वो नंबर था पानीपत के रहने वाले रविंद्र गुप्ता जी का। पुलिस उधर पहुँच गयी लेकिन उनको बच्चे नहीं मिले। पर जब उन्होंने गाड़ी का जायजा लिया तब उनको कुछ हाथ नहीं लगा.
२९ अगस्त १९७८ एक गडरिया को रस्ते के महज बाजुमें ही एक लड़की की लाश नजर आयी उसने पुलिस को खबर कर दी। पुलिस को उस जगह से लड़की की और लड़के की बॉडी मिल गयी,और वो लाशे गीता और संजय की थी.और वो जगह भी उनके घर से महज ४ किलोमीटर ही दूर थी.इस बात से लोकसभा मैं हंगामा मच गया सभी लोग प्रधानमंत्री को ताने देने लगे उसके बाद उनके ऊपर प्रेशर भी आ गया था.और आखिर कर ३१ अगस्त १९७८ को पुलिस को कर मिल ही गयी पर नंबर प्लेट बदल दिया था.कार मैं उनको खून के धब्बे और बाल और सिगरेट के छिलके मिले पर कोई आदमी नहीं मिला। पुलिस खोजती गयी पर कुछ भी हाथ नहीं आ रहा था.
८ सितम्बर १९७८ को दो आदमी एक दौड़ती ट्रैन के डब्बे मैं चढ़ रहे थे और अंदर जाने के बाद उनको ये पता चला की ये तो आर्मी वाला डब्बा है.उन्होंने आर्मी वालो को डरना चाहा पर आर्मी के जवानो ने उनको पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया ,ये दोनों कोई और नहीं रंगा और बिल्ला थे.पुलिस ने पूछताछ के बाद ये पाया की उन्होंने उन दो बच्चो का अपहरण पैसो के कारन ही किया था लेकिन जब उन दोनोको पता चला की इनके पापा नेवी मैं हैं तो उन्होंने उनको मार दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने केस की पूरी पूछताछ कर कर २६ नवंबर १९७९ को फांसी की सजा दे दी.और उन्होंने राष्ट्रपति को फांसी की सजा से मुक्त करने के लिए अर्जी की थी लेकिन वो ख़ारिज हो गयी. और ३१ जनवरी १९८२ को तिहार के जेल मैं उन दोनों को फांसी दे दी.
रंगा बिल्ला दोनों एक अपराधी थे और उनको उनके किये की सजा मिल गयी.