साल 2018 से पहले हमें बहुत सुनने को मिलता था कि कैश से दिए जाने वाले चंदे के कारण चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता की कमी है। जब Electoral Bond स्कीम लाई गई, तो सरकार ने दावा किया कि यह स्कीम पारदर्शिता को सुनिश्चित करेगी।
अब जब इलेक्टोरल बॉन्ड्स को असंवैधानिक घोषित किया गया है, तो चुनावी फंडिंग पर इसका क्या असर होगा? आर्थिक मामलों के जानकार और जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर प्रो. अरुण कुमार कहते हैं कि “Electoral Bond की समाप्ति से चुनावी फंडिंग पर बहुत कम असर पड़ेगा क्योंकि चुनावी फंडिंग का ज्यादातर हिस्सा नकदी में ही आता है। यह निर्णय केवल फंडिंग की पारदर्शिता के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। सत्ताधारी दलों को धन मिलता रहेगा जबकि विपक्ष के धन का स्रोत कम हो जाएगा।”
नितिन सेठी कहते हैं, “मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा असर नहीं होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने बहुत देर कर दी थी और इस दौरान सोलह हजार करोड़ रुपये कुछ सालों में ही जमा हो गए थे। लोकसभा चुनाव से पहले एक 30 दिन की अंतिम अवधि थी, जिसमें राजनीतिक दलों ने फिर से Electoral Bond के माध्यम से पैसे लिए। राजनीतिक दलों का नुकसान समझने के लिए, उनका 3-4 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।”
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