नमस्कार दोस्तों।
आज हम उस डॉन के बारे मैं बात करनेवाले हैं जो वाकई मैं मुंबई पर राज किया करता था जिसको देख कर सबकी नजरे झुक जाती थी. जिसने अपने पुरे जीवन काल मैं एक भी गोली नहीं चलायी वो डॉन था Haji Mastan। Haji Mastan Underworld का पहला Don और Bollywood के साथ रिश्ता करीब का रहा हैं. हाजी मस्तान के बारे मैं कई ऐसी घटनाये हैं जिसमें वो शामिल था लेकिन पुलिस की रिकॉर्ड मैं उसका नाम कभी भी सीधी तरीके से नहीं आया था.हाजी मस्तान का रुतबा भी बढ़िया मिजाज का था वे हमेशा सफ़ेद कलर की पोशाख पहना करते थे। उनको देख कर किसी को भी ये नहीं लगता था की वो एक डॉन हैं। एक बार एक कस्टम अफसर बहुत ही तंग कर रहा था.वो हमेशा Haji Mastan के माल के ऊपर छापा मारा करता था लेकिन कुछ दिन बाद उसका तबादला किया गया उसने अपने प्लेन की टिकट करली और जेक पलाइन मैं बैठ गया.लेकिन जब प्लेन का दरवाजा बंद ही होने वाला था तब अचानक एक पाँव अंदर आया सफ़ेद कुरता पहने हुए हाजी मस्तान मिर्ज़ा अंदर आये उन्होंने वो कस्टम अफसर के सामने जाकर उनके हाथ मैं हाथ मिलकर ये कहा अलविदा साहब।
हैदर मस्तान का जन्म
तमिलनाडु के कुडलूर मैं साल १९२६ मैं पैदा हुए हाजी मस्तान का नाम पहले हैदर मस्तान मिर्ज़ा था। और उनको हाजी मस्तान ये नाम तब मुंबई ने दिया था.घर की गरीबी के कारन मस्तान के पिता ने तमिलनाडु छोड़ कर किस्मत आजमाने के लिए मुंबई का रुख किया।और साल १९३४ मैं क्रॉफर्ड मार्किट मैं उन्होंने साइकिल पंक्चर की दूकान खोली। हाजी मस्तान को मुंबई मैं बड़ा बनना था वो हररोज यही सोचता था की क्या किया जाये जिससे ढेर सारे पैसे कमा सकू। साल १९४४ मैं हाजी मस्तान को मुंबई आये हुए १० साल होगये थे.देश बदल रहा था.उसी वक्त हाजी मस्तान की मुलाकात ग़ालिब शेख से हुयी। ग़ालिब शेख को एक ऐसा लड़का चाहिए था जो डॉक पर कुली का काम करे और कुछ सामन कपड़ो मैं छुपकर बहार लाये।तो उसे बेचकर पैसे कमा सके। मस्तान इस बात पर राजी होगया और वो ग़ालिब के लिए काम करने लगा.काम चल रहा था लेकिन कुछ समय के बाद हाजी मस्तान की मुलाकात सुकुब नारायण बखिया से हुयी।बखिया एक गुजरात का तस्कर था जो इलेक्ट्रॉनिक सामान ,घडिया ,सोना इन चीजोंकी तस्करी किया करता था.हाजी मस्तान ने उसके साथ मिलकर इतना पैसा कमाया की वो अब मस्तान से मस्तान भाई बन गया था. हाजी मस्तान के पास बहुत ही अच्छा तरीका था वो सामने वाले इंसान को जानकार उससे काम करवा लेता था. अपनी मीठी जुबान और अपने वसूलोंके डैम पर मस्तान बड़ा होगया था.
हाजी मस्तान बनने का सफर
एक बार मस्तान का एक दोस्त हुआ करता था। उसने और मस्तान ने मिलकर डॉक से सोना निकला था. लेकिन उसी वक्त पोलिस ने उसके दोस्त को पकड़ लिया। अब सोना मस्तान के पास मैं रह गया लेकिन मस्तान मिर्ज़ा ने उस सोने को नहीं बेचा जब उसका दोस्त जेल से छूट कर वापस आया तब उसने उसको लेकर उस सोने का बटवारा कर लिया।ये बात मस्तान मिर्ज़ा को उसके वचनबद्ध होने का साबुत देती थी. मस्तान अक्सर हज की यात्रा करता था और गरीब लोगोंको भी हज की यात्रा करवाता था इसी वजह से मस्तान मिर्जा का नाम Haji Mastan बन गया. उसके सूट और महंगी गाड़िया Haji Mastan को मुंबई का डॉन बनने से नहीं रूक पायी। हैजी मस्तान ने अपने पुरे जीवन काल मैं एक भी क़त्ल नहीं किया। वो हमेशा से ही उससे बचा रहता था. अगर उसको जरुरत पड़े तो वो ऐसे काम अपने तमिल दोस्त मुदलियार से करवाता था.
Bollywood के साथ रिश्ता
हाजी मस्तान मुंबई मैं अपने कदम जमा रहा था और उसी वक्त मुंबई मैं बॉलीवुड का दौर चल रहा था। हाजी मस्तान को फिल्मों का शौक हुआ करता था। वो कई बार पार्टी मैं बोलयूड के सितरोंको आमंत्रित करता था और उनके साथ अपनी फोटो खिचवाता था. Haji Mastan को मधुबाला बहुत ही अच्छी लगती थी. दोनों के बीच मैं दोस्ती भी होगयी लेकिन रिस्ता नहीं बन सका इसके लिए हाजी मस्तान ने मधुबाला जैसी दिखने वाली लड़की के साथ अपनी शादी कर्ली।दिलीप कुमार,राज कपूर ,अमिताभ,धर्मेंद्र जैसी बॉलीवुड शक्सियतोंके साथ हाजी मस्तान की दोस्ती हुआ करती थी. मस्तान ने कई साडी फिल्मों मैं अपना पैसा डाला लेकिन वो फिल्में चली नहीं।और इसी वजह से Bollywood के साथ Underworld का रिश्ता भी कायम होगया।
हाजी मस्तान की जेल
भारत देश बदल रहा था। इंदिरा गाँधी तब भारत की प्रधानमंत्री हुआ करती थी. हाजी मस्तान का काम मुंबई मैं जोरो शोरो से चल रहा था. लेकिन साल १९७५ मैं भारत मैं इंदिरा जी के सरकार ने इमर्जेन्सी लागु कर दी। और उसी वजह से हाजी मस्तान को पकड़कर जेल मैं जाना पड़ा। लेकिन जेल मैं भी हाजी मस्तान को vip जैसा सम्मान मिला।मस्तान ने अपना रुतबा जेल मैं भी कायम रखा. उसी वक्त मैं हाजी मस्तान की मुलाकात जयप्रकाश नारायण जी से होगयी। और अपने १८ महीनो के जेल मैं मस्तान पूरी तरह से बदल गया था. जब वो जेल से बहार आया तब उसने पॉलिटिक्स मैं जाने का निर्धार किया। हाजी मस्तान ने उसके बाद मैं ही अपनी पार्टी चालू करदी जिसका नाम था दलित मुस्लिम अल्पसंख्यांक महासंघ।और अपने पार्टी का प्रचार करने के लिए उसने दिलीप कुमार को प्रचार के काम पर लगा दिया। और ऐसे एक डॉन की पॉलिटिक्स मैं एंट्री होगयी। हाजी मस्तान को इसमें भले ही सफलता नहीं मिली लेकिन जबतक वो जिन्दा था तब तक वो मुंबई का डॉन ही रहा
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